29-10-2020 20:58:48 .
वेबडेस्क। हिंदू रिति- रिवाज में गाय के गोबर की पूजा होती है। ऐसे में इस बार की दिवाली कुछ अलग होगी लोगों को गोबर से बने दीए मिलेगी इस बार पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए गाय के गोबर के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है. गोबर के बने डिजाइनर दीयों से इस बार की दिवाली राेशन होगी। बीजापुर जिले के नक्सल प्रभावित ब्लाक भैरमगढ़ में महिला स्वसहायता समूह ने करीब 12 हजार दीये बनाए हैं। इन गोबर के दीयों से घर-आंगन रोशन होंगे धार्मिक महत्तव के अनुसार गोबर से निर्मित दीये शुभ होते है तो वहीं इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी। भैरमगढ़ ब्लाक के पाथारास की संतोषी महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं इन दिनो तेजी से दिए बना रही हैं । कुछ समय पहले तक यहां महिलाएं खेतों में काम करतीं, घर संभालतीं और गोठान में गाय का गोबर उठाते नजर आती थीं। इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है। समूह की महिलाओं ने कहा कि इस साल उन्होंने 12 हजार से अधिक दीपक बनाने की ठानी है जिसे वे हर हाल में पूरा करेंगी । महिलाओं ने कहा कि यह पहली बार जब इस ब्लीक में रहने वाले लोग गोबर के दीए से अपने घरों को रौशन कर दीवाली की खुशियां मनाएंगे । गौरतलब कि भैरमगढ़ ब्लाक नक्सली मामलों को लेकर संवेदनशील ब्लाक की श्रेणी में आता है।
एसे बन रही हैं आत्मनिर्भर गांव की महिलाएं
कुछ समय तक इस गांव की महिलाएं गरीबी से जूझते हुए अपना परिवार चला रही थीं। महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बिहान के स्व सहायता समूहों से जोड़कर प्रशासन द्वारा महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया गया। यह प्रयास सफल रहा और अब महिलाएं इस अनोखी कलाकारी के जरिए आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं। गोबर से निर्मित दीए इस दिवाली में घरों को रोशन करने के लिए तैयार हैं। समूह की अध्यक्ष हेमबती कुदराम और सचिव बसंती यादव के साथ ही अन्य महिलाओं ने कहा कि वे पहले गोठान में वर्मी कंपोस्ट बनाते थे । दिया बनाने का प्रशिक्षण मिलने के बाद वे इस काम को कर रही है । इससे उन्ही आमदनी में जहां बढ़ोत्तरी होगी तो वहीं दूसरी ओर उन्हें रोजगार भी मिला है ।
गाय के गोबर में मिलाते हैं गोंद
महिलाओं ने बताया कि करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह सानने के बाद इसे हाथ से खूबसूरत आकार दिया जाता है। इसके बाद इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है। अभी तक दो हजार दीयों का निर्माण हुआ है। इको फ्रेंडली होने के चलते जिले के अन्य शहरों इसकी मांग होगी इसकी पूरी संभावना है । उन्होने कहा कि इसके अलावा गोबर के बचे हुए चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद भी बना रही हैं।
दो रूपए में बिकेगा एक दीपक
विकास खंड परियोजना प्रबंधक रोहित सोरी ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से पाथरस की 10 महिलाओं को हमने गोबर के दीए और ऑर्गेनिक खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया है। इको फ्रेंडली होने के कारण इन दीयों की काफी मांग आ रही है। दीपक को बेचने में समूह को कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए 24 रूपए दर्जन के हिसाब से ये दीए बेचे जाएंगे । दीए को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने उपयोग में लाया जा सकता है। दीया के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीए बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इकोफ्रेंडली माना जा रहा है।