जगदलपुर | सरकारी विभागों के उच्चाधिकारियों से सरकार और आम जनता को अपेक्षा होती है कि वे अपने विभागों मे अनुशासन और पारदर्शिता पूर्ण व्यवस्था कायम रखने मे अपने पदप्रभाव और अनुभव का उपयोग कर लोकहित मे काम करें..लेकिन अगर उच्चाधिकारी के कार्यालय ही भ्रष्टाचार और अनुशासन हीनता को बढावा देने लग जाएं तो फिर लोकहित और राज्यहित गौण होने लगते हैं...ऐसा ही कुछ कर्तव्यों के विपरीत पिछले डेढ साल से दक्षिण वन वृत बस्तर के वन विभाग मे देखा जा रहा है..प्रशासन के सभी विभागों मे एक/ डेकोरम / व्यवस्था बनी होती है ..जो वन विभाग मे ध्वस्त हो चुकी है..यहां का मुख्य वन संरक्षक कार्यालय जहां एक ओर इस व्यवस्था को खत्म कर रहा है तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार को बढावा भी दे रहा है..विभागीय बजट आबन्टन मे कमीशन खोरी को अगर व्यवस्थागत अनिवार्यता मान भी लें तो फील्ड मे काम करने वाले रेन्जरों से सीधा लेन देन उन्हे अनुशासनहीन बना रहा है..वे अपने अफसरों को कुछ समझते ही नही है..रेन्जरों व्दारा भ्रष्टाचार और काम मे लापरवाही अनियमितता करने पर उनके अफसर व्हाउचरों को रिजेक्ट कर भुगतान रोकते हैं ..तो मुख्य वनसंरक्षक कार्यालय बडे अफसरों को अनियमितता और भ्रष्टाचार को नजर अन्दाज कर चैक काटने को मजबूर करता हैं..इससे साफ संकेत मिलते हैं मुख्य वन संरक्षक कार्यालय भ्रष्टाचार को बढावा देकर एस.डी.ओ. और डी.एफ.ओ. स्तर के अफसरों के महत्व को रेन्जरों की नजरों मे गिरा रहा है.. शासन व्दारा वर्तमान मुख्य वन संरक्षक श्री राव का प्रमोशन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक पद पर तो किया गया मगर पद स्थापना नही की गयी है परिणाम स्वरूप व्यवस्था और चरमरा गयी है..उच्चपद पर प्रमोशन के बावजूद निम्न पद पर डटे रहने के पीछे क्या कारण है यह भी विभाग मे चर्चा का विषय है..स्थानीय कुछ जन प्रतिनिधियों की श्री राव मे क्या रूचि है या श्री राव की इस पद पर क्या रूचि हे यह भी समझ से परे है..सरकार के पास दक्षिण वनवृत मे पदस्थ करने के लिए कोई अफसर नही है यह भी कम चिन्ता का विषय नही है..पिछले डेढ दो सालों मे मुख्य वन संरक्षक कार्यालय व्दारा जारी किये गये बजट से कराये गये कार्यों का भौतिक सत्यापन कराये जाने से चौंका देने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं..