29-01-2018 17:46:00 .
बीजापुर। अब सीआरपीएफ की 85 बटालियन के कार्यक्षेत्र में आने वाले करीब सत्तर गांवों में माओवादियों की ‘ब्रेन वॉशिंग’ नीति डगमगाने लगी है और यही वजह है कि इन दिनों आईईडी तलाशने में फोर्स को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। फोर्स ने गांवों में ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि लोगों को सुरक्षाबलों से डर नहीं लगता है बल्कि जवानों को देख उनके आंखों में चमक आ जाती है। सीआरपीएफ की 85 बटालियन के एक सहायक कमाण्डेंट विश्वजीत झा ने अपनी तैनाती के दौरान इस इलाके में बदलते माहौल को महसूस किया है। उनका कहना है कि कमाण्डेंट सुधीर कुमार ने इलाके में शांति स्थापना के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है और सिविक एक्शन प्रोग्रेम की शक्ल में थोड़ा-सा फेरबदल किया है। अब ये प्रोग्रेम फोर्स के कैम्प से बाहर निकलकर गांवों में आ गया है। लोग ऐसे में खुद फोर्स से जुड़ने लगे हैं। लोगों को फोर्स का दोस्ताना अंदाज पसंद आया और यहीं माओवादियों की ब्रेन वाशिंग पॉलिसी फेल होने लगी। माओवादी की नीति रही है कि वे फोर्स के खिलाफ लोगों को भड़काते थे और उनके सहयोग से सुरक्षाबलों और सरकारी तंत्र को नुकसान पहुंचाते थे। डेढ़ साल पहले 85 बटालियन में पदस्थ कमाण्डेंट सुधीर कुमार का कहना है कि सबसे पहले इंसानियत है और हमेशा उनकी कोशिश रहती है कि किसी निर्दोष के साथ अन्याय ना हो। आम आदमी परेशान ना हो। बटालियन के सभी जवानों को इसके लिए खास हिदायत दी गई है। जवानों का अप्रोच गांवों में नम्र निवेदन के साथ हो और जवान हमेशा आम लोगों की मदद को तत्पर रहें। उनका कहना है कि खुले तौर पर माओवादियों से सरेण्डर के लिए कहा गया है। उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश हमेशा की जाती है, लेकिन यदि माओवादियों की ओर से हमला किया जाता है तो फोर्स तैयार है मुंहतोड़ जवाब देने के लिए। 2008 से 85 बटालियन यहां तैनात है। जब तैनाती हुई तो क्षेत्र काफी अशांत था। अब फोर्स की पैठ गांव तक ही नहीं बल्कि लोगों के दिलों में बन रही है। दरअसल कैम्प में आने वाले हर ग्रामीण की मदद की जाती है और इससे पब्लिक खुश है। वारदातों में आई है कमी एक दशक से इस क्षेत्र में शनैः शनैः शांति स्थापना हो रही है। कुछ वारदातों पर गौर करें तो कुछ ही साल पहले नक्सलियों ने इस क्षेत्र पर अघोषित रूप से अपना ‘प्रभुत्व’ बना लिया था। 3 सितंबर 2005 को नक्सलियों ने सीआरपीएफ की एमपीवी को उड़ा दिया था। इसमें 24 जवान शहीद हुए थे। 16 सितंबर 2011 को चेरपाल सीएएफ कैम्प के एक इंस्पेक्टर की हत्या कर हथियार लूट लिए गए थे। 2009 में कुरचोली में 85 बटालियन के एक सहायक कमाण्डेंट नक्सली हमले में शहीद हो गए। दो साल पहले पदेड़ा और पिछले साल एक-एक एसपीओ की नक्सलियों ने हत्या की। कमाण्डेंट सुधीर कुमार का कहना है कि हाल ही के दिनों में वारदातों में कमी आई है क्योंकि लोगों का फोर्स पर विश्वास बढ़ा है।