jagdalpur, 08-01-2018 12:58:51 .
जगदलपुर| छत्तीसगढ़ में हमेशा आईएस और आईपीएस सोसल मिडिया में अपने पोस्ट को लेकर विवादित रहते है लेकिन यह पहला मौका है की बस्तर में तैनात आईएस और जिला पंचायत सीईओ रितेश अग्रवाल के एक पोस्ट पर विदेशी बस्तर दौड़े चले आये और यहाँ आ कर प्रकृति के बीच रहने वाले आदिवासियों को प्राकृतिक साधनों से ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें ट्रैनिग देने की शुरुवात कर दी | पोस्ट के बाद मेक्सिको के एक प्रोफेसर ने मुहिम शुरू की है। भारतीय मूल के प्रो. वरुण दाइटम स्थानीय इंजीनियरों को कम खर्च में ईको फ्रेंडली मकान, डोम और अन्य निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं। वरुण मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। वे पिछले तीन दिनों से लाइवलीहुड कॉलेज में जिला पंचायत के इंजीनियरों और अन्य लोगों को मिट्टी और रेत से दीवार और छत की ढलाई के गुर सीखा रहे हैं। इस निर्माण को स्पैनिश वॉल्ट भी कहा जाता है। पहले चरण में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं। ये गांव-गांव जाकर महिला समूहों और अन्य लोगों को इन निर्माणों की जानकारी देंगे।
भट्ठे में नहीं पकाते हैं स्पैनिश वॉल्ट की ईंट, हर मौसम के अनुकूल भी
स्पैनिश वॉल्ट के तहत मकान, दुकान, रेस्टोरेंट के साथ अन्य प्रकार के सभी निर्माण मिट्टी की जुड़ाई से किए जाते हैं। इसके लिए गीली मिट्टी और रेत का मिश्रण तैयार किया जाता है। छत की ढलाई और बेस के लिए ईंट भी ऐसे ही बनाई जाती है और ईंट को भट्ठे में पकाया नहीं जाता है। मिट्टी और रेत इसे मजबूती देते हैं। इसके बाद मिट्टी और रेत के मिश्रण से दीवार खड़ी की जाती है। छत में भी मिट्टी, रेत के मिश्रण से ढलाई की जाती है। ये मकान पूरी तरह ईको फ्रेंडली होने के साथ मौसम के अनुकूल भी रहते हैं। इनके निर्माण में कांक्रीट के निर्माण की अपेक्षा 40 प्रतिशत खर्च कम होता है।
सीईओ ने सोशल मीडिया में डाला था पोस्ट, पढ़ने के बाद ट्रेनिंग देने आए
मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी के प्रो. वरुण दाइटम मूलत: बंगलुरू के रहने वाले हैं। वे पिछले पांच सालों से मेक्सिको में हैं। हाल में वे छुटिट्यों में भारत आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने जिला पंचायत सीईओ रितेश अग्रवाल की एक पोस्ट पढ़ी जिसमें लिखा था कि यदि कोई बस्तर में आकर यहां के लोगों को नया कुछ सिखाना चाहता है तो उनका स्वागत है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद उन्होंने गूगल सर्च किया तो यहां एनएमडीसी और नक्सलियों से संबंधित जानकारी ही ज्यादा मिली। इसके बाद भी वे बस्तर आए और यहां तीन दिनों का ट्रेनिंग सेशन चलाया। इसके बदले में उन्होंने कोई फीस नहीं ली।
पोस्ट पढ़कर स्कॉटलैंड की इंडिया भी पहुंचीं आदिवासियों से मिलने
सोशल मीडिया में सीईओ रितेश अग्रवाल ने प्रो. वरुण दाइटम के ट्रेनिंग देने की जानकारी पोस्ट की थी। इसे पढ़कर स्कॉटलैंड की महिला जिनका नाम इंडिया है वो भी जगदलपुर पहुंच गईं। इंडिया अभी भारत के दौरे पर हैं। इंडिया ने बताया कि बस्तर जैसे इलाके में ऐसे ट्रेनिंग सेशन की जानकारी के बा वो खुद को नहीं रोक पाई और यहां आ गई। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से जो जानकारी मिली बस्तर उसके ठीक उलट है। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता अक्सर भारत भ्रमण के लिए आते थे। उन्हें भारत इतना पसंद था कि उन्होंने मेरा नाम ही इंडिया रख दिया। अभी पहले चरण में जिला पंचायत के इंजीनियरों को स्पैनिश वॉल्ट बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। तीन दिनों से इंजीनियर स्वयं मिट्टी और रेत का गारा बना रहे है और खुद ही दीवार और ढलाई का काम कर रहे हैं। बस्तर में शहरी क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो आज भी बड़ी संख्या में ग्रामीण मिट्टी के मकान में रहते हैं। ऐसे में यहां स्पैनिश वॉल्ट के सफल होने की ज्यादा संभावनाएं हैं। मिट्टी के मकान यहां के कल्चर में शामिल है। ऐसे में गांव-गांव में महिला समूह को इसका प्रशिक्षण दिलवा कर इससे व्यावसायिक फायदे भी उठाए जा सकते हैं। महिलाओं को इस निर्माण की बारीकी सिखाने के बाद इन्हें आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराएंगे। इस काम के लिए उन्हीं महिलाओं को चुना जाएगा जो गांव-गांव में गारे से मकान बनाने के लिए मजदूरी का काम करती हैं।
नकारात्मक सुना था, सब अच्छा लगा
बदलते बस्तर की इस तस्वीर को देखते रविवार को स्कॉटलैंड की इंडिया भी पहुंचीं। इसके अलावा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के छात्रों के दल ने भी देखा कि कैसे आदिवासी इलाके अपनी परंपरा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। बीएचयू के छात्र राज ने बताया कि बस्तर के बारे काफी नकारात्मक सुना था लेकिन यहां जिस अंदाज में काम हो रहा है उसे देखकर अच्छा लगा। वे साथियों के साथ शैक्षणिक भ्रमण पर बस्तर आए हैं।