जगदलपुर। बस्तर दशहरा का राम-रावण युद्ध से कोई सरोकार नहीं है। यह ऐसा अनूठा पर्व है, जिसमें रावण नहीं मारा जाता अपितु बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी सहित अनेक देवी-देवताओं की 13 दिन तक पूजा-अर्चना होती है। बस्तर दशहरा विश्व का सर्वाधिक दीर्घ अवधि वाला पर्व माना जाता है जो 75 दिन तक चलता है। हरेली अमावस्या अर्थात तीन माह पूर्व से दशहरा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। यह माना जाता है कि यह पर्व 600 से अधिक वर्षों से परंपरानुसार मनाया जा रहा है। दशहरा की काकतीय राजवंश एवं उनकी इष्टदेवी मां दंतेश्वरी से अटूट प्रगाढ़ता है। इस पर्व का आरंभ वर्षाकाल के श्रावण मास की हरेली अमावस्या से होता है, जब रथ निर्माण के लिए प्रथम लकड़ी विधिवत काटकर जंगल से लाई जाती है। इसे पाटजात्रा विधान कहा जाता है। पाट पूजा से ही पर्व के महाविधान का श्रीगणेश होता है। तत्पश्चात स्तंभरोहण के अंर्तगत बिलोरी ग्रामवासी सिरहासार भवन में डेरी लाकर भूमि में स्थापित करते हैं। इस रस्म के उपरांत विभिन्न गांवों से लकड़ियां लाकर रथ निर्माण कार्य प्रारंभ किया जाता है।